
वॉशिंगटन/नई दिल्ली।
ट्रम्प के बयान पर यू-टर्न: मोदी को बताया दोस्त, अमेरिकी राजनीति और भारत के साथ रिश्तों को लेकर बीते 48 घंटे बेहद हलचल भरे रहे। शुक्रवार सुबह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ पर भारत और रूस को चीन के पाले में जाने की आशंका जताते हुए लिखा— “ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है।
उम्मीद है उनका भविष्य अच्छा होगा।” इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हलचल मचा दी। लेकिन महज 12 घंटे के भीतर ही ट्रम्प ने बैकफुट पर आते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना “दोस्त” बताया और भारत-अमेरिका रिश्तों को “रीसेट” करने की बात कही।
ट्रम्प का यू-टर्न: मोदी को बताया दोस्त

शाम 6 से 7 बजे के बीच व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रम्प ने कहा— “मैं हमेशा मोदी का दोस्त रहूंगा। भारत के साथ संबंधों को रीसेट करने के लिए हमेशा तैयार हूं।”
इसी बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार सुबह 9:45 बजे एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा- राष्ट्रपति ट्रम्प की भावनाओं और हमारे संबंधों को लेकर उनके विचारों की मैं तहे दिल से सराहना करता हूं। भारत और अमेरिका के बीच एक पॉजिटिव और दूरदर्शी रणनीतिक साझेदारी है।

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ट्रम्प की नाराजगी: भारत पर भारी टैरिफ का जिक्र
प्रेस ब्रीफिंग में ट्रम्प ने एक तरफ भारत के साथ दोस्ती की बात की, तो दूसरी तरफ भारतीय नीतियों पर नाराजगी भी जताई। उन्होंने साफ किया कि वे भारत के रूसी तेल खरीदने के फैसले से निराश हैं। ट्रम्प ने कहा— “हमने भारत पर इसके लिए 50% का भारी टैरिफ लगाया है।”
ट्रम्प ने यह भी दावा किया कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश ऊंचे टैरिफ लगाकर अमेरिका को आर्थिक नुकसान पहुंचा रहे हैं। एक रेडियो इंटरव्यू में उन्होंने कहा था— “भारत पहले दुनिया में सबसे ऊँचे टैरिफ लगाने वाला देश था, लेकिन अब उसने मुझे जीरो टैरिफ का प्रस्ताव दिया है। अगर मैंने कड़े टैरिफ नहीं लगाए होते, तो भारत कभी ऐसा प्रस्ताव नहीं देता।”
जॉन बोल्टन का दावा: ट्रम्प-मोदी की दोस्ती खत्म

ट्रम्प के बयान से कुछ घंटे पहले ही अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जॉन बोल्टन ने ब्रिटिश मीडिया को दिए इंटरव्यू में दावा किया था कि ट्रम्प और मोदी की पहले जैसी “खास दोस्ती” अब खत्म हो चुकी है। बोल्टन ने कहा था कि व्हाइट हाउस की नीतियों ने अमेरिका-भारत संबंधों को “दशकों पीछे धकेल दिया” और इससे मोदी रूस और चीन के करीब आ गए।
बोल्टन ने चीन को इस स्थिति का लाभ उठाने वाला करार देते हुए कहा— “चीन ने खुद को अमेरिका और ट्रम्प के विकल्प के रूप में पेश किया है। यह ट्रम्प की बड़ी रणनीतिक गलती है और इसे अब आसानी से ठीक नहीं किया जा सकता।”
टैरिफ विवाद और अमेरिकी अदालत

भारत और अन्य देशों पर ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए हाई टैरिफ को लेकर मामला इस समय अमेरिकी अदालत में चल रहा है। 4 सितंबर को ट्रम्प ने कोर्ट में दलील दी थी कि भारत पर 50% टैरिफ लगाना जरूरी है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो अमेरिका को “बहुत ज्यादा आर्थिक नुकसान” उठाना पड़ेगा।
निचली अदालत ने पहले यह कहा था कि ट्रम्प विदेशी सामान पर इतने भारी टैरिफ नहीं लगा सकते। लेकिन ट्रम्प ने उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनका कहना था कि यह टैरिफ रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने की रणनीति का हिस्सा है।
ट्रम्प के अनुसार, “भारत पर रूसी तेल खरीदने के लिए टैरिफ लगाया गया, ताकि युद्ध खत्म करने में मदद मिले। निचली अदालत का फैसला हमारी पिछले 5 महीनों की व्यापारिक बातचीत को मुश्किल में डाल सकता है और यूरोप, जापान व दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ हुए समझौते खतरे में पड़ सकते हैं।”
अमेरिका की शर्तें: रूस से दूरी और BRICS से अलगाव
इस पूरे विवाद के बीच अमेरिकी उद्योग मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने भारत पर लगे 25% एक्स्ट्रा टैरिफ हटाने की शर्तें भी रखीं। ब्लूमबर्ग टीवी से बातचीत में लुटनिक ने कहा कि भारत को अगर राहत चाहिए तो तीन कदम उठाने होंगे—
रूस से तेल खरीद बंद करना होगा।
BRICS से अलग होना पड़ेगा।
अमेरिका का स्पष्ट समर्थन करना होगा।
लुटनिक ने साफ लहजे में कहा— “अगर भारत रूस और चीन के बीच पुल बनना चाहता है तो बने। लेकिन या तो डॉलर का समर्थन करें या अमेरिका का। अपने सबसे बड़े ग्राहक का साथ दें या 50% टैरिफ चुकाएं।”
मोदी-ट्रम्प रिश्तों की जटिलता
मोदी और ट्रम्प के रिश्तों को लेकर हमेशा उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। एक ओर ट्रम्प मोदी को अपना करीबी दोस्त बताते हैं और भारत के महत्व को स्वीकार करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे बार-बार भारत की “टैरिफ नीतियों” और “रूस के साथ निकटता” पर नाराजगी जाहिर करते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प की रणनीति चुनावी और आर्थिक दबाव दोनों से प्रभावित होती है। वे घरेलू राजनीति में यह संदेश देना चाहते हैं कि वे अमेरिकी उद्योगों की रक्षा कर रहे हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत जैसे बड़े बाजार को खोना भी अमेरिका के हित में नहीं है।